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बस्ती जिले का इतिहास बहुत समृद्ध और प्राचीन है। यह उत्तर प्रदेश के पूर्वी हिस्से में स्थित है और प्राचीन काल से ही इस क्षेत्र का महत्व रहा है।
प्राचीन काल में बस्ती और इसके आसपास का क्षेत्र कौशल देश का हिस्सा था। कौशल देश का उल्लेख वैदिक ग्रंथों जैसे शतपथ ब्राह्मण में मिलता है। यह क्षेत्र वैदिक आर्यों और प्रसिद्ध व्याकरणाचार्य पाणिनि से भी जुड़ा हुआ माना जाता है। भगवान राम, जो कौशल देश के राजा दशरथ के ज्येष्ठ पुत्र थे, की महिमा इस क्षेत्र में फैली हुई थी। रामायण के अनुसार, अयोध्या से निकटता के कारण इस क्षेत्र का धार्मिक और सांस्कृतिक महत्व बढ़ा।
मध्यकाल में यह क्षेत्र विभिन्न शासकों के अधीन रहा। बस्ती का नाम संभवतः "वासति" (निवास करना) से उत्पन्न हुआ माना जाता है, जो समय के साथ "बस्ती" बन गया। इस क्षेत्र में बौद्ध धर्म का भी प्रभाव रहा, और कुछ इतिहासकारों का मानना है कि यहाँ बौद्ध स्थल भी मौजूद थे। बाद में यह क्षेत्र मुगल साम्राज्य के अधीन आया, और फिर ब्रिटिश काल में यह अवध क्षेत्र का हिस्सा बन गया।
आधुनिक काल में बस्ती जिला स्वतंत्रता संग्राम में भी सक्रिय रहा। यहाँ के लोगों ने अंग्रेजों के खिलाफ कई आंदोलनों में हिस्सा लिया। 19वीं और 20वीं सदी में यहाँ के साहित्यिक और सांस्कृतिक योगदान ने भी इसे प्रसिद्धि दिलाई। विशेष रूप से, आचार्य रामचंद्र शुक्ल (1884-1941), जो हिंदी साहित्य के इतिहास को व्यवस्थित करने वाले पहले विद्वान माने जाते हैं, का जन्म बस्ती जिले में हुआ था। उनकी कृति "हिंदी साहित्य का इतिहास" हिंदी साहित्य में एक मील का पत्थर है। इसके अलावा, संत कबीर का मगहर (जो अब संत कबीर नगर जिले में है, पहले बस्ती का हिस्सा था) से संबंध भी इस क्षेत्र को ऐतिहासिक महत्व देता है।
आज बस्ती जिला अपनी सांस्कृतिक धरोहर, त्योहारों और परंपराओं के लिए जाना जाता है। यहाँ के प्रमुख त्योहारों में नवरात्रि, रामनवमी, दीपावली, होली, ईद और दशहरा शामिल हैं। इस तरह, बस्ती का इतिहास प्राचीन वैदिक काल से लेकर आधुनिक भारत तक एक लंबी यात्रा को दर्शाता है।
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